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लघु कथा
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शनिवार, 16 मार्च 2013
रुबाइ-165
रुबाइ-165
तोड़ी पियर पसरल सगर बाध अनन्त
मोनक उपवन धरि धूरि एलै बसन्त
नव रंग संग खेल रहल होली वसुधा
हे राम नै होइ कखनो नेहक अन्त
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