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गुरुवार, 13 जून 2013

रसिक

97. रसिक

"आइ राजो बाबूकेँ पुलिस पकरि कऽ लऽ गेलै ।"मधु काका चौबटियापर जुटल भीड़केँ कहलनि ।ई खबरि सूनि हम चौंक गेलौं ।राजो बाबू धनाढ्य जकाँ रहैत छलथि ।खूब छहर-महर करैत छलथि ।सब दिन माँछे-मासु, उहो दुनू साँझ, तिनका पुलिस लऽ गेलै। सत्तमे आश्चर्यक गप छल ।हम मधु काकासँ पुछलियै "ओ तँ अमीर छलथि तखन किए जहल गेलथि ?"
मधु काका असली मुद्दापर आबैत कहलनि "ओ नकली अमीर छलै ।पैघ चटोरी छलै ।अपन सऽखक पूर्ती लेल कतेको बैंकसँ लाखो टाकाक ऋण लेने छलै, जकरा ओ चुका नै सकलै ।थाकि-हारि कऽ बैंक केस केलकै आ पुलिस लऽ गेलै ओकरा ।"
सबटा बात बुझलापर हमरा राजो बाबूसँ घृणा जकाँ हुअऽ लागल ।हम सोचैत छलौं जे एहन रसिक हेबाक कोन जरूरत अछि जकरा कारणे जहल जाए पड़ए आ बनल बनाएल इज्जत माँटिमे मिल जाए ?

अमित मिश्र

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