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शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2012

गजल=अमित मिश्र

प्रस्तुत अछि आशिष अनचिन्हार जीक देल गेल पाँती सँ बनल गजल . . . . . . .
जल्दी टुटी गेलासँ दर्द नै होइ छै ,
जल्दी जुटी गेलासँ फर्द नै होइ छै ,
जिनगी मे जौँ और किछ नै केलक ,,
रोटी आनि लेला सँ मर्द नै होइ छै ,
सौँसे देह उघारे छै कोनो बात नै ,
लुंगी पेन्हला सँ बेपर्द नै होइ छै ,
मौसम कतबो पलटी खाइ छैक ,,
मनुष्यक हृदय सर्द नै होइ छै ,
दुनियाँ लेल अहाँ कतबो छी क्रुर ,,
माँ के पुजलासँ बेदर्द नै होइ छै ,
माँग मे सेनुर नै माटि भरि दियौ ,,
माटीयो पड़लासँ गर्द नै होइ छै . . . । ।
अमित मिश्र

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