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शुक्रवार, 10 अक्तूबर 2014

गजल-हम भाग्यक रचयिता नै छी

गजल-2.37

हम कल्पना रचै छी भाग्यक रचयिता नै छी
हम दुखक गजल छी मीता सुखक कविता नै छी

हम मात दैत छी सदिखन भूखकेँ सब ठाँ सखि
दू पाइपर बिकै जे ओहन तँ वनिता नै छी

मरि रहल गर्भमे बिनु केने कनेको गलती
कहियौ अहाँ कने, की जनमहिसँ पतिता नै छी

अछि आगि मोनमे पर अछि पानि लेने ई जग
छी भस्म भेल बिजुरी हम गरम तड़िता नै छी

बान्हल रही अमित जगतक मोह-फाँससँ सदिखन
हम आब जलधि धरि पहुँचल मस्त सरिता नै छी

2212-1222-2122-22

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