अझुका रचना-बाल कविता
292. जाल कोना क' बिनने छी
मकड़ा मकड़ा कहू हमरा
कोन गुरूसँ सिखने छी
सान्हि-कोन छप्परपर सेहो
जाल कोना क' बिनने छी
कोन गाछसँ रुइया आनलौं
धागा महीन बनेने छी
जै मशीनसँ ओकरा बिनलौं
बाजू कत' नुकेने छी
जाल रहैए कोमल तैयो
पकड़ि कोना क' झुलै छी
जाले ध' क' लटकल रही
जाल पकड़ि क' बुलै छी
अहाँ त' छी कुशल कारीगर
काज एक क' दिअ ने
टूटल हमर पतंगक डोरी
तकरा बीन क' दिअ ने
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