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सोमवार, 4 फ़रवरी 2013

गजल

आप के लिए "गजल"
रचना कार : श्री अमित मिश्र जी

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पैर से पत्थर उड़ाते चले हम चलते चलते
बाधाओं को पिछे छोड़ते गये हम हँसते हँसते

अब तेरे चेहरे मेँ पहले जैसी ताजगी नहीं है
मुरझा गया है गरीबी की तपिस सहते सहते

सागर में खो जाने को बेताब है दिल आज फिर
थक सा गया हूँ पर्बत मैदानों में चलते चलते

कहीं बिखर ना जाये रिश्तोँ की अनसुलझी बुनाई
इसलिए चुप हो गया बीच आँगन मेँ कहते कहते

ईद का चाँद कैसे निकलेगा बादल सा चादर फाड़
जब नफरत लिए बैठे हैँ गले मिलते मिलते

न कभी गीता न कुरान याद आयाजिसे
बैठे हैं जन्नत का सपन कलेजे मे बुनते बुनते

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