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बुधवार, 20 मार्च 2013

ज्ञानी बनलाह मूसा भैया

बाल कविता-21
ज्ञानी बनलाह मूसा भैया

दतमनि कऽ अगिला दाँत चमकेलक
भरि-भरि बाल्टी पानि उझललक
मोझ पिजा आ जुल्फी सम्हारि
मूसा भैया भरिगर बस्ता लादलक

झटकि-मटकि जे डेग उठेलक
उड़कि-गुड़कि कते बेर ओंघरेलक
कूदि-कूदि दौड़ल नाँङरि झाड़ि
धड़फड़-धड़फड़ मुदा समय बचेलक

रगड़ि-झगड़ि अगिला सीट पकड़लक
गलत-सलत जबाब दऽ खूब हँसेलक
घोड़ी मैडम कहलनि चमेटा मारि
सीखत वएह जे पोथी घोरि पीलक

दोस्त-महिम खूब उल्लू बनेलक
पी जो पोथी, खूब खिसियेलक
हमहूँ बनब ज्ञानी, ई सोचि-विचारि
फाड़ि पोथी पानि संग खा लेलक

अमित मिश्र

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