गीत
बाते बातपर बड मारि करैये
कोना सुतबै संगे कनिया लथारि मारैये
माँगै छी भोजन तऽ बसिया खुआबै ये
साड़ी साया बलाउज बर्तन मजबाबै ये
काज ने करी तऽ बड गारि पढ़ै ये
कोना सुतबै..........
एक हाथ बेलना दोसरमे लेने झारू
घरमे रूइया जकाँ घूनय मेहरारू
बाहरमे पतिवरता नारि बनै ये
कोना सुतबै.............
रहऽ ने दैये कनिया हमरा लग रूपैया
फसा देलनि अमितकेँ मामा कसैया
भागै छक तैयो खेहारि मारैये
कोना सुतबै.........
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (25-05-2015) को "जरूरी कितना जरूरी और कितनी मजबूरी" {चर्चा - 1986} पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
हार्दिक धन्यवाद सर
हटाएं