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किछुए मिनटक भोर-साँझ होइ
बाँकी केवल दुपहर
सुरूजक तापसँ पिघलय धरती
नित दिन आठो पहर
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माए सदिखन माए रहै छथि
दिवसक अछि जरूरत कोन
हम चानी बनि जीबि रहल छी
माए तँ छथि सदिखन सोन
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माएक नेह गहिंरगर पोखरि
साँझ-भोर डुबै छी
कखनो नोर बहै जँ ओम्हर
चुरू लगा कऽ पीबै छी
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करौट बदलैत समय संग
कहुना चलऽ पड़तै
खुश रहू वा दुखी रहू
जीबऽ पड़बे करतै
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गामक बात लिखलौं जखन
शेष बचय नै पन्ना
गाछी-बिरछी मोन पड़ैए
मारा माछक सन्ना
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सिनेहक बन्हन मजगूत जतऽ
ओतै बसैए गाम
बेन-तिहार आ बाजब-भूकब
चलैए एहने ठाम
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गामे टामे, माएक छातीसँ
निकलय दूधक धार
सौंदर्यहननक डरसँ, शहरमे
डिब्बा बंद आहार
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पोखरि-झाँखरि, बाध-बोन सब
भेटत मिसरी बोल कतऽ
बिषहारा, सलहेसक गहबर
बसैए अपन गाम जतऽ
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जकर मनमे नेह भरल छै
तकरे मन अनुराग
तकरे आँगन मैना चहकय
बिहुँसय तकर भाग
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