प्रिय पाहुन, नव अंशु मे अपनेक हार्दिक स्वागत अछि ।

शनिवार, 9 मई 2015

चरिपतिया- 53-69


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आनक खुशीमे कानै छी हम
हमर खुशीमे कानय आन
विपरीत रीत सदा चलि एलै
मनुक्खक इएह थिक पहिचान

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लोभ-मोहक व्यूहमे फँसि कऽ
लोक करैये खूबे पाप
स्वार्थ एतऽ बलशाली बनलै
लोके लोकक लेल अभिशाप


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भेड़िया साधु बनि सकै छै
मनुख बानि नै छोड़ि सकत
नरकक डर रहै छै मनमे
पापसँ मुँह नै मोड़ि सकत

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निसबद राति डेराउन लगैए
काँपय सगरो तन मन
मुदा चानक दरस पाबै लेल
तोड़ऽ पड़त सब बन्हन


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हारि हारि कऽ जीतब मीता
नीक लगैत अछि खूब
संघर्षक सुआद भेटय तखने
जखन पानि रहय उबडूब


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पाथर एतऽ पूजल जाइत अछि
पाथरेक होइ छै जयकार
पाथर तरासि जे मूर्ती बनबय
तकरे भेटै छै फटकार

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चौबिस घंटा देह गलबय जे
तकरो दुर्लभ तीमन दर्शन
मजदूरक जीवन एहने सन छै
जेना हो टूटल दर्पण


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गारि-मारिक बोइन भेटै छै
अपमानक पनिपियाइ
तैयो मजदूर पेटक खातिर
नगर नगर बौआइ


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पूनम चान मलिछाह लगैए
मन हो जेना उदास
कोनो राहु फेर घोंटलकै
प्रेमक अनूप प्रकाश


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ओहि मनुखक भविष्य की हेतै
की हेतै ओकर अतीत
जकरा लग कहियो नै पहुँचल
साहित्य आ संगीत


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दू परिवारक बीच सम्बन्धक
पूल बनाबय बेटी
धरती सन सहनशील बनि
सब बोझ उठाबय बेटी


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कने उधारी सिनेह माँगै छी
चाहै छी बतियाइ
कारी नैनक झीलमे धसि
सेनूर लगा नहाइ

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इच्छा कखनो अंत करय नै
इच्छा अगम अथाह
इच्छे कारण जीवन जगमग
नै तँ राति सियाह

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मनुखक इच्छा मरि सकत नै
बरू मनुख मरि जाएत
मृगमारिचिका सन ई इच्छा
प्रतिपल मनमे आएत

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खन पिघलै छी प्रेम अगिनमे
खन जुआरि होइ मंद
खन हर्षित खन पीड़ित बनै छी
खूब उठैए द्वन्द

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अतीतक फन्ना उनटायब तँ
मनमे उठत हिलोर
मुस्क, सिसकी संगे निकलत
होयब भाव विभोर

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कठोर देह आ कोमल हिया
राखू अहाँ मीत
कर्म अपन सुन्नर रहत तँ
होयत सगरो जीत








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