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बुधवार, 29 जुलाई 2015

वर्णमाला : ढ

बाल कविता-203
वर्णमाला : ढ


"ढ"सँ ढोल ढमढम बाजय
सुनिते सगरो दुनिया नाचय
खूब हँसै छै गुल्लू भाइ
विषहारा मेला छै आइ

मानरि ता ता धिन धिन बाजय
बीन बहुत बिन बिन कऽ गाबय
भगतापर विषहारा खेलाइ
नाचल सँपबा मूड़ी उठाइ

कचरी मुरही झिल्ली पाकय
फुक्का पिपही खूबे बाजय
चाट समौसा खूब बिकाइ
चलू देखै लए मेला आइ


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