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गुरुवार, 10 अक्तूबर 2013

जनी-जाति

156. जनी-जाति

"अहाँ जे एना मूँह फुलेने छी से नीक बात नै ।जनी-जातिकेँ एतेक गुमान नीक नै लागैत छै ।"पति अपन रूसल पत्नीपर खौंझ कऽ कहलक ।
पत्नी चोट्टहि उत्तर देलक "एना जुनि बाजू ।नारी मने की ? खाली गारि-मारि सहैत रहू ।हमहूँ एहि समाजक छी ।हमरो सब किछुक करबाक अधिकार अछि ।हमर मरजी, हम रूसी वा कानी ।"
"आहि रे बा !समाजक चर्चो करैत छी आ समाजकेँ चिन्हितो नै छी ।एँ यै बूझल नै अछि जे ई समाज पुरूष प्रधान अछि नारी प्रधान नै ।"
"जाउ जाउ, हमरा बेसी समाजक परिभाषा नै सिखाउ ।जँ पुरूखे प्रधान छै तखन नारीक जरूरत किए पड़ै छै ?बच्चा जनमाबी हम, घर सम्हारी हम, गारि-मारि सही हम, आ प्रधान बनत पुरूक !हे आब ई सब चलै बला नै अछि ।"पत्नीक तमसाएल मुँह देख पति अपना आपकेँ डेराएल सन अनुभव केलनि ।"यौ आब मौगीए सब कामा कऽ पुरूखक पालन करै छै, पुरूखक संग डेग मिलबैत अछि ।यौ आब समाजमे जनी नामक कोनो जाति बचले नै अछि ।आब एक्कै जाति अछि, मनुखक जाति ।बुझलौं ने ?"
पत्नीक तर्क सूनि पति सन्ट भऽ गेलथि ।

अमित मिश्र

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