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शुक्रवार, 12 अप्रैल 2013

महाप्रलय



धरतीक सतहपर ज्वालामुखी फूटि गेल हो
चल-अचल प्राणीक रोआँ-रोआँ स्वाहा करैत
पशु-पक्षीक तन-मोनमे धधकैतआगि
ई आगि पेटक नै, कण्ठक थिक
दुनियाँ भरिक पैघ-पैघ कुरीतकें
अछूत बूझि छोड़ने जा रहल
डाहने जा रहल, सजीवक अस्तित्वकें
आकुल-व्याकुल भेल मानव समुदाय
चौबिसो घण्टा गर्दामे लेटाइत
लजाइत नै अछि अपन पाप, गलतीपर
तड़पि रहल आत्मा एहि पीड़ासँ
मुदा तन छोड़बाक लेल तैयार नै
नदी-नाला सूखि गेल सागर धरि
फाटि गेल धरती, खण्ड-खण्ड भेल
सूखि गेल गाछक हँसैत हरियर पात
लागि रहल छै आबि गेल महाप्रलय
मरनासन्न भेल एक जोड़ा मोर
आशक नजरिसँ आकाश दिश तकैत
कुहरि-कुहरि कऽ सिसकैत बाजल
हे भगवान! बरसा दे एक ठोप पानि

अमित मिश्र

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