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रविवार, 17 मार्च 2013

घोर संकट


विहनि कथा- घोर संकट

सरोज अपन वियाहक कार्ड पर दोस्त सबहक नाम लिखैत छल तखने टेबूल पर राखल मोबाइल बाज' लागलै । फोन कोनो अनचिन्हार नम्बर सँ आएल छलै । दोसर दिस सँ जे किछ कहल गेलै सँ सूनि सरोजक मुँह जे कने काल पहिले हँसै छल आब कोनो विपदा कए भाव ओहि मुँह पर नाचि रहल छलै । हाँ-हूँ किछ नहि बाजि सकलै । मोन मे अनेको सुनामी एक्के बेर उठि गेलै । फोन काटि सोफा पर आबि क' बैस रहल । आँखि बंद क' डरल मोन सँ सोच' लागल , चारि साल पहिले जकरा सँ एकतरफा प्रेम करै छलौँ आ ओ मिसियो भाव नहि दै छली एतेक दिन कए बाद आइ फोन क' कहि रहल यै जे ओ हमरा सँ बड प्रेम करै छथि , जँ हम हुनका नहि अपनेबै त' ओ अपन प्राण द' देती । एहन समय मे इ सब भ' रहल छै जखन आइ राति हुनक वियाह छै आ परसू हमर । भगवान इ केहन दिन देखा रहर छथिन । एक दिश ओ , दोसर दिश हम आ तेसर दिश सब बात सँ अंजान हमर होइ बाली कनियाँ , किछ नहि फुरा रहल की करी आ की नहि? कोनो उपाय नहि सूझि रहल छै एहि घोर संकट सँ बचबाक?


अमित मिश्र

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