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शनिवार, 18 मई 2013

मुँहदुस्सा

बाल कविता-59
मुँहदुस्सा

मास्टर साहेब मास्टर साहेब
तोतरहबा हमर मुँहदूसै यै
हमरा दिश देख जी निकालए
मुँह घोघचा खिसियाबै यै

रौ तोतरहबा की करै छें ?
किए सबहक मुँह दूसै छें ?
सत्त बाज नै तँ कनैठी पड़तौ
किए एते बदमाशी करै छें ?

मास्टर साहेब सत्त बाजै छी
जानि-बूझि किछु नै केलौं
इमली खाइक आदत हमरा
आइयो एकटा खा लेलौं
दाँत कोथ भेल मुँह घोघचै यै
खट्टेसँ मुँहदुस्सा बनि गेलौं

अमित मिश्र

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