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शुक्रवार, 2 अगस्त 2013

धरती लागतै सजल बरियात

बाल कविता-94
धरती लागतै सजल बरियात

कीन दे एकटा बड़का झोड़ा
भरबै ओहिमे काजक चीज
गरमी आबिते गरमी भरबै
सरदीमे भरि लेबै शीत

मेघ करिकबा बहुते भरबै
भरबै रंग पनिसोखाक सात
आबिते वसन्त भरतै झोड़ा
मज्जर, फूल आ हरियर पात

सबटा झोड़ा सैंत कऽ राखबै
खोलबै जखने पड़तै काज
गरमीमे सरदी बला खोलबै
हारि जेतै गरमी बला राज

तहिना सरदीमे गरमी बला
सुखारमे कऽ देबै बरिसात
सब दिन गमगम फूल गमकतै
धरती लागतै सजल बरियात

रहतै सदिखन समान मोसम
सब दिन खेबै ओरहा कुल्फी
छत्ता, स्वीटर, पंखा छोड़बै
फैसनेवुल कपड़ा फहड़ेबै जुल्फी

अमित मिश्र

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