बाल कविता-93
हिमगिरिक माँथ झुकेबै
मेहनतसँ नै पिण्ड छोड़ेबै
समय व्यर्थ बितेबै नै
पल पल प्रतिपल गतिशील भऽ
लक्ष्यसँ नजरि हँटेबै नै
कतबो गरजै खसै बिजलौका
काँपै धरती उनटै नौका
जंगल-झाड़ आ काँट-कूश हो
रुकबै तँ नै भेटतै मौका
नित दिन भोर नव जनम लऽ
सिनेहक आयत पढ़बै हम
हमरा अछि विश्वास एते
हिमगिरिक माँथ झुकेबै हम
अमित मिश्र
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