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रविवार, 27 अप्रैल 2014

खुरलुच्ची बौआ

124. खुरलुच्ची बौआ

ककरोसँ हो डर-भर नै अपनामे तूँ मस्त रहें
पूरा करैत माँग हजारों माए-बाबू तोहर पस्त रहय
कखनो थारी पीटैत आ कखनो गिलास फोड़ि चलें
कागत फाड़ि कऽ नाह बनबें ठोकि ठोकि पिनसिन तोड़ि चलें
कखनो पोथी लेल हल्ला करें नोरमे अंगा बोरि चलें
मीठगर भोजन सदिखन चाही बिनु पुछने चिन्नी घोरि चलें
गुरकुन्ना केर घर्र-घर्र कर्कश आँगनक धरती कोरि चलें
बाजब कखनो शुद्ध ने बाजें आखर-आखर तोड़ि चलें
माए-बाबूकेँ तामस चढ़िते झटपट खेलब छोड़ि चलें
कतबो तूँ खुरलुच्ची बौआ परिवारमे ममता घोरि चलें
टूटल कतबो करेज ककरो तूँ नेहक ताग जोड़ि चलें

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