बाल कविता- 256 अंगूर
रसगर मिठगर सुन्दर अंगूर चौकोपर बिकाइ छै । छुबिते एकरा टुभ द' खसै बहुते ई लजाइ छै । मोती जकाँ लागै छै अनमन देख मोन लोभाइ छै । अंगूर आगू सब किछ फीका मुँहमे जखन जाइ छै ।
अमित मिश्र
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