बाल कविता-161
के सिखेलकै ?
के सिखेलकै चुट्टीकेँ जे चलै छै एक्के पाँतीमे
कौआ रहय उघारे जखन अहाँ रहै छी गाँतीमे
के सिखेलकै भौंराकेँ जे बैसय सुन्नर फूलपर
के सिखेलकै तितलीकेँ जे नै बैसैए शूलपर
के सिखेलकै कुकुरकेँ जे बाजय केवल आनपर
के सिखेलकै मोरकेँ जे नाचय काइली तानपर
के रचलकै सूरज-पृथ्वी, के गढ़लकै चानकेँ
बतबू सृजनहार के जे रचलक मनुख महानकेँ
सार्थक प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (02-03-2015) को "बदलनी होगी सोच..." (चर्चा अंक-1905) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुंदर रचना की सुंदर प्रस्तुति।
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