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रविवार, 1 मार्च 2015

किछु चरिपतिया


बिनु इच्छा नै काज चलय
जिनगी निरस लागय
पोसय इच्छा मनमे तऽ
 खुशहाली गुनगुनाबय


मोनमे अछि भीड़ बड
 बाहर अछि सुनसान
की होली की दिवाली
 की मनायब रमजान


मेंहदी रचल हाथमे
अछि बड़का संताप
आगू जिनगी बोझ बनत
पड़त गृहस्थीक चाप


हँसि हँसा कऽ जीबू मीता
 कानि कानि की जीयब
 ढाकी भरि भरि भेटत खुशी
 दोसरोक नोर जँ पीयब


झील सन दुहु नयन  
कमल फूल सन गाल
 माछ सन चंचल वदन 
औ जी करय कमाल


कुसुम कली सन कामिनी
कनक रंग अछि अंग 
मोनक घुँघरू बाजि उठय 
जखन रहथि ओ संग


माटिक जनमल रंगसँ
राँगल अछि मधुमास
पीयर सरिसो प्रेम उझलि
भौंरा लेल भेल खास

तुलसीचौरा भेल निपत्ता
बनलै समतल फर्श
बेटी, बेटा बनि रहलय
देखू वर्षे वर्ष

पर्दा पाछू देख लिअ 
उठल अजब तूफान
देखिते पिया, हियामे 
मारय कोशी उफान

एहन आहट नीक नै 
तनमन दै सिहराय 
टुटतै तार सिनेहक 
बूझि पड़ैए आय


प्रेमक परिभाषा बदलि गेल,
 बदलि खेल ओ रीत
राधा आधा वसनमे बैसल, 
कृष्ण किनै छथि प्रीत

राधा-कृष्णक रास बनल अछि 
आइ-कल्हि बड खास 
प्रेमक बीया बाउग नै होइये 
होइये (देहक) चास


आइ हियामे जानि नै
, भेल केहन अनघोल
विहुँसैत ठोरक बीचसँ
, निकसल बसंती बोल


नव मशीनक युगमे बाजू, 
निकलत कोना काग
डीजे छोड़य तान एते जे
 बिसरि गेल सब राग

हिया बीचमे जहर भरल, 
तेँ तऽ शब्द कटाह
ककरा संगे हाथ मिलत, 
सब के सब मरखाह

स्वपीड़ाकेँ भोगि लिअ, 
आनक सुखकेँ छोड़ि
नै तऽ धधरा उठत हिया, 
मारत मूड़ी मचोड़ि











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