प्रिय पाहुन, नव अंशु मे अपनेक हार्दिक स्वागत अछि ।

गुरुवार, 16 मई 2013

नेङगरा दरबान

बाल कविता-56
नेङगरा दरबान

राजा जीक गाछीमे, दरबान बनि एलै चोर
भरि राति खेलक आम चलि गेल भोरे-भोर
कहियो लीची कहियो आम कहियो जामुन, कटहर
बदलि-बदलि कऽ सब दिन खाए अंगुर आ बरहर
मालीकें जे पता चलल तँ ओ बहुते तमसाएल
आइ रातिमे सब सिखेबै, मुदा चोरबे नै आएल
दोसर दिन जे चोरबा एलै, माली फोंफ काटै छल
एकटा पुरना गाछपर चोरबा चुप्पेचाप चढ़ै छल
एकटा ठाढ़ि कोकनल छलै पड़लै जखने टाँग
ठाढ़ि सहित धरतीपर खसल टूटल हाथ आ टाँग
ओ बुझै छल किओ नै देखै मुदा देखै छथि भगवान
देलनि सजाय एहन जे बनि गेल ओ नेङगरा दरबान


अमित मिश्र
फोटो-अज्ञात

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें