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बुधवार, 15 मई 2013

हमहूँ करबै श्रृंगार

बाल कविता-55
हमहूँ करबै श्रृंगार

हमहूँ करबै श्रृंगार माए गे मँगा दे एस्नो-पौडर
ललकी ठोररंगा ठोरसँ साटि कऽ हमहूँ बनबै सुन्नर
जुट्टी गुहि दे, जुत्ता आनि दे, ललकी साड़ी पहिरा दे
नजरि-गुजरि नै लागै ककरो काजर सेहो लगा दे
बहुते हेतै दरद तें नै कहियो कान छेदेबौ
झुमका नथिया अपने पहिरें हम नै कहियो लेबौ
अपने जाइ छें पर्स घुमाबैत हम खाली हाथ घुमै छी
फिल्मी छौड़ी सन केश कटाबें हम झोटा लऽ टहलै छी
नै चलतौ तोहर मनमानी आब हमहूँ हुकुम चलेबौ
हमहूँ तँ तोरे बेटी छी, नीक-बेजाए तोहर अपनेबौ
जल्दी आनि दे अलता नै तँ कानि-कानि तामस चढ़ेबौ
सूतल रहबें जखन तूँ चुपचाप श्रृंगार रचि लेबौ

अमित मिश्र

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