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मंगलवार, 27 अगस्त 2013

सूरज धरि एक पाइप लगा दी

बाल कविता-101
सूरज धरि एक पाइप लगा दी

पूव उगै छथि दिनकर भैया, पश्चिममे भऽ जाइ छथि अस्त
भरि दिन दौड़थि मेहनत करथि, होइ छथि नै कनिको पस्त

ओ छथि तँ धरती छै आ छै जीवनक चक्र चलैत
गाछ-बिरिछ मुस्कैत गाबैत आ मेघक घर पानि बनैत

लू चलैत गर्मीमे देखू चलिते रहै छथि ओ अनवरत
पियासे जान जाइत हेतै चलू पियाबी पेप्सी शरबत

नील गगनमे गाछो नै छै, छाहरिकेँ नै नाम-निशान
फट्ठी, खरही लेने चलू बना देबै एक छोट मचान

भोरे-भोर जे अर्घ्य दैत छी, पी लै छै धरती माता
सूरज धरि एक पाइप लगा दी, जूड़ि जेतै सीधे नाता

जँ हुनका भोजन नै भेजबै, बनि जेताह कमजोर अगन
भूखल पेटमे तामस उठतनि, लगा देताह सबदिना सूर्यग्रहण

अमित मिश्र

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