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बुधवार, 20 नवंबर 2013

पटरी लऽगसँ दूरे रह (4 टा कविता)

बाल कविता-111
पटरी लऽगसँ दूरे रह

छुक छुक छुक छुक ट्रेन चलै छै
भुक भुक भुक भुक बत्ती बरै छै
तेजीसँ सब ट्रेन चलै छै
पों-पेँ पों-पेँ भोंपू बजै छै
देख दूरसँ आबि रहल छौ
गड़ गड़ गड़ गड़ बाजि रहल छौ
खसलौ गुमती हटले रह
पटरी लऽगसँ दूरे रह
धक्का लगैसँ बचले रह

***
बाल कविता-112
चुटकी दाब

छपर-छुपर पानिमे अगबे पोठी
चल पकड़ब लऽ धूए धोती
हे हे हाथसँ सब ससरलौ
कछमछ कछमछ करैत पड़ेलौ
मार छड़पानी धर-पकड़
राख लोटामे आबि एम्हर
फेर ससरलौ बाप रे बाप
झट दऽ मलहा चुटकी दाब

***
बाल कविता-113
भगबू धुआँ

जरलै चुल्हा धुआँ भेल
भरि अंगना पसरिये गेल
जरलै घूरा धुआँ भेल
भरि दरबज्जा भरिये गेल
जखने गाड़ी घुर्र-घुर्र भेल
सगरो धुआँ भरिये गेल
चिमनीयोंसँ धुआँ भेल
लालटेनोसँ धुआँ भेल
सबटा धुआँ हवामे गेल
साँसमे जखने वायु गेल
संगमे भीतर धुआँ गेल
डेग-डेगपर रोगी भेल
तैयो धुआँ बढ़िते गेल
बात बुझू बड धुआँ भेल
जल्दी चेतू देरी भेल
भगबू धुआँ स्वास्थक लेल

***
बाल कविता-114
माएक बोली मैथिली

पढ़ि विज्ञान ज्ञान बढ़ा ले
गणित पढ़ि हिसाब बना ले
हिन्दी हिन्दुस्तानक भाषा
नित पढ़ैक हिस्सक लगा ले

पढ़ि संस्कृत देवताकेँ चिन्हबेँ
अर्थशास्त्र पढ़ि टाका बुझबें
नागरिक पढ़ब बहुत जरूरी
निज अधिकारक गप तूँ बुझबें

इतिहास तँ भूतकाल देखेतौ
भूगोल भरि ब्रह्माण्ड घुमेतौ
पर्यावरण तँ पढ़बे करिहें
गाछ-बिरिछसँ सम्बन्ध बनबिहें

जते विषय भेटौ सब पढ़िहें
पढ़ि-पढ़ि अपन ज्ञान बढ़बिहें
मुदा माएक बोली मैथिली बौआ
भोर-साँझ बस पढ़िते रहिहें

***
बाल कविता-115
आबिते जाड़

बढ़लै जाड़ बढ़ि गेल कुहेस
काँपै थरथर सगरो देश
पुरबा-पछबा जखन बहाबै
सुइटर-मोफलर काज नै आबै
गर्मीमे जकरा दूर हटेलौं
आबिते जाड़ वैह आगि सटेलौं
दिन आब राति बनि गेल
सीरक तऽर सब बन्द भेल
जमि कऽ पानि वर्फ बनल
चान-तरेगण घर सुतल
आबिते जाड़ इस्कूलमे छुट्टी
सूरजो बितबैथ घरपर छुट्टी

अमित मिश्र

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