गजल-1.74
घुरि गेल नव दिन घुरि कऽ तेँ गाम आबू
गामेक बाटक काँटकेँ मिल बहारू
छै स्वर्ण जिनगी मन मुदा कोइला छै
जे झोल अछि पसरल किओ आबि झारू
खुश छी जखन धरि तखन धरि मोन लागय
तेँ मोनकेँ दुख दिससँ सदिखन हटाबू
छै खूनमे गरमी मुदा डेरबुक मन
सूतल हियामे सूर्य सन आगि लेसू
धधकैछ जे क्रांती तखर बात कम हो
जे चुल्ही शीतल भेल तकरा पजारू
बड भूख रचि लेलौं सिनोहो बहुत अछि
साहित्य बड लिखलैछ, नव कलम आनू
मुस्तफाइलुन-मुस्तफाइलुन-फाइलातुन
2212-2212-2122
अमित मिश्र
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