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शनिवार, 20 जून 2015

वर्णमाला : ख


बाल कविता- 184

वर्णमाला : ख

'ख'सँ खरहा उज्जर छै
पातर-सोतर दुब्बर छै
कूदै- फानै लुक्कर छै
नै नै ओ बड सुन्नर छै

रूइया सन उज्जर छै रंग
मक्खन सन कोमल छै अंग
दौड़-धूप     कऽ   करै  तंग
मजा आबै छै खरहा संग

कोठी तर नुका जाइ छै
सबटा गाजर खा जाइ छै
रहि रहि ओ हँसा जाइ छै
सुन्नर खेल खेला जाइ छै
तेँ ने खरहा सुन्नर छै
पातर-सोतर दुब्बर छै


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