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रविवार, 21 जून 2015

वर्णमाला : ग

बाल कविता- 185
वर्णमाला : ग


'ग'सँ गदहा किए उदास
खा रहलै नै हरियर घास

एक दिन काज जे बेसी केलकै
भरि दिन बोझा खूब उघलकै
आलिस-मालिस करबे केलकै
प्रेमसँ मालिक घर आनलकै
तैयो किए करय उपास
खा रहलै नै हरियर घास

अनसन केने काज नै करब
मालिकसँ आइ खूबे लड़ब
बैसल खा कऽ खूबे सूतब
काज करैते आब नै मरब
चाहै छै नै बनब खबास
खा रहलै नै हरियर घास

आलस कोना नीक लगै छै
किए काजसँ मुँह मोड़ै छै
बैसल देहमे जंग लागै छै
रोग-व्याधिक घर बनै छै
एहने लोक करय उपहास
'ग'सँ गदहा किए उदास


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