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शनिवार, 18 जुलाई 2015

मशीन

191.  मशीन

सुतले रही कि फोन बाजि उठल ।गामसँ बाबूक फोन छलै ।एतेक भोर आ बाबूक फोन ? कोनो अर्थ नै लागि सकल ।फोन उठेलहुँ ।हमरा हैलो कहैसँ पूर्वे बाबूक थरथराइत आवाज कानमे गूँजि उठल- बौआ जल्दी गाड़ी पकड़ि लए ।माएक मोन बड खराब छह ।लास्ट स्टेज...कोनो चान्स नै ...अपन मुँह देखा दहक ।
हमर छाति उठि-उठि बजरऽ लागल ।चट दऽ अपन मैनेजरकेँ फोन कऽ छुट्टी माँगलियै ।ओम्हरसँ और बेसीए नुनछराएन जबाब भेटल- अगिला एक मास धरि छुट्टी नै भेटत ।काजक ओभर लोड छै ।" बड गिड़गिड़ेलियै ।अपन परिस्थिति कहलियै, मुदा ओ नै मानलक ।आइ हमरा अनुभव भऽ रहल अछि जे आब लोक संवेदानहीन भेल जा रहल छै ।काजक आगू दुनियादारी बिसरि गेल छै ।ओनाहितो ई मशीनी दिनचर्या आ औद्योगिक युगक देन छै ।आखिर मशीनमे संवेदना तऽ नहिञे ने होइ छै ?

अमित मिश्र

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