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बुधवार, 22 जुलाई 2015

लघु कथा - बरखा

193. बरखा

आइ झमकौआ बरखा भेल अछि ।अकाससँ नै, बीस सालक बाद हमर आँखिसँ ई बरखा भेल अछि ।बीस वर्ष पहिने जखन बेटा हमरा दुनू प्राणिक बात काटि कोनो शहरी लड़कीसँ वियाह केलक आ तकर बाद हमर सभक चिन्ता छोड़ि विदेश चलि गेल, तहिते एहन बरखा भेल छल ।तकर बादसँ कहियो काल बून्दा-बून्दी होइत छलै ।जखन रिटाइर भेलौं, पत्नी लकबा ग्रसित भेलीह, जखन पत्नीकेँ कुहरैत आ स्वयंकेँ असमर्थ देखलहुँ, तखन कने मोनमे मेघ लागल आ नैनसँ झीसी पड़ल छल ।दस दिन पहिने जखन डाॅक्टर हमर किडनी खराब हेबाक घोषना केलनि तकर बाद मोनमे दुखक मेघ नुका कऽ भगवानक भजनमे मगन भऽ गेल छलहुँ ।एक्कहि टा चिन्ता छल जे मुइलाक बाद हमर देहक की दशा होयत, मुदा आइ मोनमे नुकाएल मेघ गर्जन-तर्जन संग झूमि कऽ बरसिए गेल ।आखिर किए नै बरसत !जीवनक अंतिम समयमे बेटा अपन किडनी डोनेट कऽ कर्ज उतारबाक लेल हमरा सामनेमे ठाढ़ अछि ।

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