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गुरुवार, 16 जुलाई 2015

मजबूरी

190. मजबूरी

माए तऽ माए होइ छथि ।ममताक मुर्ती ।हमर माए आइ धरि मुँह उठा कऽ किछु नै बजलनि ।सब दिन अपन दुखधनियाँमे लागल रहलनि ।काँच-पाकल जे भेटै खाएल करथि ।से माए किछु दिनसँ बेमार छथि ।गैसक रोग परेसान केने छै ।से दुखित माए आइ भोरे भोर भनसा घरसँ टोक देलनि," बौआ, आम खएबाक मोन होइत अछि ।आइ बजारसँ पाकल मालदह लेने अबिहऽ ।"
माएक माँग कोना पुराबी ? आइ हमर हम सबसँ बेसी मजबूर लागि रहल छी ।आम नै आनि देबै तऽ माएक मोनमे दुख हेतै आ जँ आनि देबै तऽ गैस फेर परेसान करतै ।सोचि रहल छी जे एहि मजबूरीसँ कोना उबरल जाए !

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