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सोमवार, 24 अगस्त 2015

अस्सी मोन पानि

195. अस्सी मोन पानि

घरमे एकमात्र पुतौह, उहोमे सबसँ जेठकीकेँ बेटा भेलै ।पूरा परिवार तऽ खुश छलहे मुदा पतौह सबसँ बेसी खुश छली ।मोनेमे सोचि रहल छली जे आब एकटा बहाना भेट गेल ।जखने कोनो काज हेतै कि कहबै जे हम बच्चाकेँ रखने छी ।छोड़ि कऽ जेबै तऽ कानऽ लागतै ।आब घरक काज धन्धासँ मुक्ति भेटत ।शद्ध होइ धरि तऽ सासु एकर खूब सेवा केलनि मुदा शुद्ध होइते स्थिति बिगड़ि गेलै ।पुतौह अनमट काटि सूतल रहथि कि सासु केबार पीटैत तीख स्वरमे कहलनि,"एँ यै ।अहाँ बड पुरखानि बनै छी ।सात बाजै छै आ महरानी फोंफ काटि रहल छथि ।कान खोलि कऽ सुनि लिअ ।चिल्का जनमल एकर मने ई नै जे घरक काज  छोड़ि देबै ।"
सासुक बात सुनि कऽ पुतौहक इच्छा जेना अस्सी मोन पानि पड़ि गेलै ।तामसे लोहछि उठली ।तकर बाद दस दिन धरि अपन सुन्दर मुँहसँ अपच्य शब्दक माद्धयमे सासुकेँ पुरखा याद दियाबैत रहलनि ।

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