194. गर्मी
आइ इस्कूलक छत ठलाइ छलै ।रातिक दस बाजि गेलै ।काज सम्पन्न कऽ साइकिल खड़खड़बैत घर दिस चलि देलहुँ ।नियोजित नौ हजरिया मास्टर लेल एतबे बड बेसी भेलै ।घरपर सब सूति रहल छल ।हमर पदचाप सुनि पत्नि उठलनि ।जा धरि मुँह-हाथ धोलौं ता धरि भोजन परसि देलनि ।नोन-तेल आ मकइक रोटी मने राशन खतम ।खा कऽ सुतै लेल गेलहुँ मुदा गर्मी जान लै बला छल ।नीन नै आबि रहल छल ।आँखिक सोझा नून-तेल मकइक रोटी आबि रहल छल ।आइ बीस तारिख छै आ राशन खतम, भोरे पता चलि गेल छल जे बौआक फीस नै देबै तऽ ट्युसन बंद भऽ जेतै ।सोचि लेलौं जे ककरोसँ पैंच लऽ लेब ।की हेतै कने गरियेबे ने करतै ? पिछला पाइ माँगतै तऽ कोनो बहाना बना देबै ।ई सोचि कने गर्मी कम भेल ।तखने फोन बाजि उठलै ।ओम्हरसँ सारक फोन छलै -पाहुन, खुशखबरी अछि ।एखने हमरा बेटा भेल ।छठिहारमे आशिर्वाद देबाक लेल एबे करबै ।
अंतिम शब्द सुनिते लागल जे फेर गर्मी बढ़ि गेल छै ।
रविवार, 9 अगस्त 2015
गर्मी
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