बाल कविता-221
बाबा केर दलानी
की रौ बौआ नीक लागै छौ बाबा केर दलानीमे
जाहि ठाँ कुश्ती करै छलथि, बाबा अपन जुआनीमे
अछरी-मछरी कत्ते मछरी गानि देखा दे पानीमे
रेहूक मूड़ा मरूआ रोटी खाइथ बाबा खरिहानीमे
एक दिन भोरे नहा कऽ देखहीं ठंढा ठंढा पानीमे
लागल कूहा तैयो बाबा जाइथ घाट मटिहानीमे
एगो धोती गंजी गमछा इच्छा नै सोना-चानीमे
किछु तऽ सीखू गुण बाबाकें, अहूँ अपन जुआनीमे
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