प्रिय पाहुन, नव अंशु मे अपनेक हार्दिक स्वागत अछि ।

शनिवार, 12 मई 2012

गजल



धन आ ऋण संगे जोड़ल त' जाइ छै
चिन्नी नोन पानिमे घोरल त' जाइ छै

जे कानैए से हँसबो जरूर करै छै
आम संग बबूर रोपल त' जाइ छै




जे काज केउ कहियो नै केलक एत'
विपति एला पर सोचल त' जाइ छै



नोर जड़ैए वा खून जड़ैए हर्ज की
कखनो क' माहुरो घोँटल त' जाइ छै



जँ लोढ़ी घसल कपार मे त' की भेल
अपनो सँ लकीर गोदल त' जाइ छै


डाह करब त' डहि जाएब अपने
डहकल करेज जोड़ल त' जाइ छै



पानि अपन बाट अपने बनबैए
इ चंचल धारा के मोड़ल त' जाइ छै



जँ कारी मायाजाल सँ मारै छै लोक के
ओ जादूए सँ मोन मोहल त' जाइ छै



सही आ गलत सब छै एहि जग मे
"अमित" गलत के टोकल त' जाइ छै



वर्ण-14

* एहि ठाम "धन" मने"+ve" आ "ऋण" मने "-ve "भेल
अमित मिश्र

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