प्रिय पाहुन, नव अंशु मे अपनेक हार्दिक स्वागत अछि ।

सोमवार, 14 जनवरी 2013

kichhu geet


जहिया लिखलौँ कपारमे माँ दर्दक आखर
हम जीबै तहियेसँ कानि कानि कऽ

जहियासँ दुर्गा दर्शन देनाइ बन्न केलौँ 
तहियेसँ हम व्याकुल टूअर भेलौँ
कोना जिनगी कटत किछु नै बाट सुझै
अहाँ चुपचाप देखै छी जानि जानि कऽ
जहिया लिखलौँ . . . . . . . . . . . .





पोखरि कात
नारियर गाछ
उड़ैत मैना
भेल प्रात
सजल पर्णकुटी
पाड़ल अरिपन
तुलसी चौरा
फूलपर भौँरा
नाचैत लत्ती
गाबैत गीत
बसंतक मास
जागल आश
मिथिलाक आँगन
गुंजैत बादन
हमर गाम
बड मनभावन





गीत

प्रेम पाँति परसलौँ पलकपर पढ़ै छी
अहाँ बाजू ने बाजू हम एतबे बुझै छी
हम अहाँकेँ अहाँ हमर छी

अछि हमरे पवन जाहिमे वास अहाँकेँ
ओ गीत हमरे जाहिमे भास अहाँकेँ
हम सब ठाम भेटब जे बाट धऽ आबू
देब प्रेमक परिक्षा अहाँ सोचि राखू
अहाँ बाजू ने बाजू हम एतबे बुझै छी
हम अहाँकेँ अहाँ हमर छी

कोनो नव गप नै जँ पत्र नै लिखब
मुदा नैनक आखर मेटा नै सकब
अहाँ कतबो नुकाउ आएब हम सपनामे
जहिना आबै छी अहाँ हमर सपनामे
अहाँ बाजू ने बाजू हम एतबे बुझै छी
हम अहाँकेँ अहाँ हमर छी
 



गीत

पुरुष-बाड़ीमे आबू लताम तऽर बैसू
खाउ लताम आ फेर बतियाबू
बनतै अपन प्रेम पिहानी
हम बनब राजा अहाँ बनू हमर रानी

महिला- बाड़ीमे आएब लताम तऽर बैसब
खेबै लताम आ फेर बतियाएब
बनतै अपन प्रेम पिहानी
अहाँ बनू राजा हम बनब अहाँकेँ रानी

महिला-बाड़ीमे एथिन कक्का यौ सजना
लगतै मारि तखन पक्का यौ सजना
पुरुष- घर घरबैयासँ किए डेराइ छी
प्रेममे जड़ि सजनी किए सेराइ छी
हेतै ने कोनो परेशानी
हम बनब राजा अहाँ बनू हमर रानी

पुरुष- पोखरि मोहार चलू ओतै बतिएबै
माछेकेँ अपन सुख दुख सुनेबै
महिला- बाधसँ बाबू जी आबैत हेथिन
देखिते कोदारीसँ घेँट काटि देथिन
सोचू सोचू यौ दोसर कहानी
अहाँ बनू राजा हम बनब अहाँकेँ रानी

महिला- दुनियाँ छै देखैत दुरबिन लगेने
प्रेमकेँ नाश कऽरऽ दल बल सजेने
पुरुष- एकेटा दिल जे सुरक्षित अछि बचल
हम अहाँक अहाँ हमरमे आबि जाउ
चलतै नै तखन मनमानी
हम बनब राजा अहाँ बनू हमर रानी
अहाँ बनू राजा हम बनब अहाँके रानी





भगवती गीत

पावन एलै नवरात हे , अम्बे घर एथिन
सब मिल करु गीत नाद हे ,अम्बे घर एथिन

गायक गोबर लऽ आँगन नीपब
कलश बैसा जननीकेँ आनब
गाँथल लाल अरहूल हे ,माँकेँ माला पहिरायब
पावन एलै . . . . . . .

सप्तशती केर पाठ सुनेबेन
सब दिन कुमारीकेँ भोजन करेबेन
फल फूल राखल पात हे ,माँकेँ भोग लगेबेन
पावन एलै . . . . . . .

कंचन थारीमे दीप सजाबू
लयबद्ध अमित आरती उतारु
करु करु सब प्रणाम हे ,माँकेँ पएर पकड़ि
पावन एलै नवरात . . . . . .

अमित मिश्र
 —


गीत

निरमोहिया अहाँ भेलियै पिया
गामसँ किए चलि गेलियै पिया
आँखिमे नोर दऽ गेलियै पिया
इयादि अपन छोड़ि गेलियै पिया

भोर भेलै आ बाजल मुरूगबा
कली खिल कऽ बनि गेलै फूल
चहुँ दिश इजोतक भेलै राज्य
चलल परीन्दा बान्हि हुजूम
एहनमे इयादि आबि अहाँ
सब किछु भऽ गेल धुआँ धुआँ
आँखिमे नोर दऽ . . . . .

एलै वसंत आ एतै फागुन
आम महुआ गेलै मजरि
कू कू कुहकऽ लागल कोयलिया
मधुसँ मधुकर गेलै तरि
जाड़ बितल तरसैत ओछैना
इहो मास बितत अहाँ बिना
आँखिमे नोर दऽ . . . . . . .

17/02/2011
अमित मिश्र



एकटा नाटकक लेल लिखल गेल गीत

कतऽ जाइ छें जुआनीक भार लऽ कऽ
गोरी आठ दस मोहल्ला बेमार कऽ कऽ

भीजल केश लागौ बरखा बरसल एतऽ
प्रेम आगिमे तपि कऽ सुखा ले एतऽ
साँझ पड़िते ई सोलहो श्रृंगार कऽ कऽ
गोरी . . . .

सूति उठि तोहर फोटो देखै छी हम
माँछ देखने बिना जतरा बनबै छी हम
नैन करेजसँ अपन तार जोड़ि कऽ
गोरी . . . .

मनलौं जनमेसँ हम उचक्का छीयै
मुदा प्रेमक बेर सजनी पक्का छीयै
संग जीबै मरै के करार कऽ कऽ
गोरी . . .



बहुत पहले का लिखा एक रचना

पैर से पत्थर उड़ाते चले हम चलते चलते
बाधाओं को पिछे छोड़ते गये हम हँसते हँसते

अब तेरे चेहरे मेँ पहले जैसी ताजगी नहीं है
मुरझा गया है गरीबी की तपिस सहते सहते

सागर में खो जाने को बेताब है दिल आज फिर
थक सा गया हूँ पर्बत मैदानों में चलते चलते

कहीं बिखर ना जाये रिश्तोँ की अनसुलझी बुनाई
इसलिए चुप हो गया बीच आँगन मेँ कहते कहते

ईद का चाँद कैसे निकलेगा बादल सा चादर फाड़
जब नफरत लिए बैठे हैँ गले मिलते मिलते

न कभी गीता न कुरान याद आया जिसे
बैठे हैं जन्नत का सपन कलेजे मे बुनते बुनते

अमित मिश्र






कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें