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बुधवार, 20 मार्च 2013

मुन्ना कक्का होली मे

{< मुन्ना कक्का होली मे>}

किनको मुँहेँ सुनने छलौँ ई गान हौ
"बुढ़बाक दिल होइ छै बेसी जुआन हौ"
होलीका दहनमे जरबै सब लाज-लेहाज छै
होली सन दिनमे लाजक कोन काज छै
चारि बजे भोरे मुन्ना कक्का उठि गेलाह
बड़का टा शंक्वाकार टोपी पहिर लेलाह
बड़का टा बाल्टी मे रंग छलै घोरल
गोला छल भांगक आधा किलो पिसल
होलीक उमंग सबटा सिगनल तोड़ैए
केउ अपन केउ भैयाक सासुर धरि दौड़ैए
भोरसँ दुपहर, दुपहरसँ साँझ भऽ गेलै
मुन्ना कक्कासँ होली खेलऽ केउ नै एलै
थाकि-हारि चललाह गाम घुमै लए
भरल बाल्टी रंग ककरो पर उझलै लए
कक्काकें देख सब केउ पड़ाइ छल
नवका-नवका गाल खोजि रंग लगबै छल
ककरा अबीर लगेता ,कनियाँ भेल स्बर्ग वासी
भौजी बिमार छन्हि, सारि बसैए काशी
तखने एकटा बुढ़िया भौजी एतबे जे पूछि देलखिन
"हमरासँ लगबा लिअ" सूनि कक्का तमसा गेलखिन
कहलनि बड जोरसँ सब "बुढ़ियाकें बजा ली"
अहाँसँ लगबैसँ बढ़ियाँ, अपनेसँ रंग लगा ली
रसे-रसे माँतक कक्का बड तमसा गेलाह
अन्त मे भरल बाल्टी रंग अपने पर उझैल लेलाह
ऐ तरह सँ मुन्ना कक्का होली मनेलाह . . . । ।

कविता रूपि लाल गुलाल अपने सबहक चरण मे आ जे छोट छथि हुनकर गाल पर । खराप नै मानब होली छै ।
अमित मिश्र

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