135. चोरक इज्जत
एकटा चोर चारि दिनसँ भुखाएल छलै ।पिछला तीन दिनमे कतौ चोरी नै कऽ सकल छलै ।चारिम दिन ओ एकटा घरमे घूसल ।भनसाघरमे जा नीक-नीक व्यँजन थारीमे निकालि लेलक ।खेनाइ शुरूये करितै कि एकटा चोर और देखाइ देलकै ।पहिल चोर खेनाइ छोड़ि कऽ देखऽ लागल ।दोसर चोर आलमारीसँ टाका निकालि कऽ जाइते छल कि पहिल चोरकेँ देखलक ।दोसर चोर पहिलसँ पुछलकै " तूँ के छें ?"
दोसर जबाब देलकै "हम चोर छी ।तूँ के छें ?"
"हम एहि घरक जेठ बेटा छी ।"
"तखन तूँ चोरि किए करै छें ।"
"हमरा डिस्को जाइकेँ छै तेँ चोरि केलौं ।"
पहिल चोर थारी घुसका कऽ ओतऽसँ जाए लागलै तँ घरक बेटा पुछलकै " तूँ जाइ किए छें ? भोजन कऽ ले ।"
"नै, हम तोरा एतऽ भोजन नै करबौ ।जखन एहि घरक भोजन कऽ घरक बेटा घरेमे चोरी करैत अछि तखन हम तोरा घरमे भोजन कऽ तोहर संस्कार उधार नै लेब ।हम अपन घरमे चोरि नै कऽ सकै छी । आखिर हमरो किछु इज्जत छै कि नै ?"ई कहि पहिल चोर चलि गेल ।
अमित मिश्र
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