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शनिवार, 30 मार्च 2013

अहींकें चलते

अहींकें चलते हम जीब रहल छी
दुखक शरबत पीब रहल छी
परिजनसँ एकात भेल,एकान्त रहि
सुखक पुरना छत्ता सीब रहल छी

छल सपना जे अंम्बर छूबितौं
ठाठ-बाठसँ निज आश्रम रहितौं
मुदा पेटक मूसा पैघ भेल तँ
बुझलौं केहन गरीब रहल छी

नै माँथ झुकाएब, सिखने छलौं
छै पाप भिक्षाटन, पढ़ने छलौं
हे पूत अहींक पालन-पोषन लेल
सब ठाँ, सब लऽग, लीब रहल छी

हम पाग खसेलौं, अहाँ उठा लेब
पुरखापर दाग लगेलौं, अहाँ मेटा देब
बादमे वृद्धात्माकें कतबो गरियाएब
मुदा एखन, अहीकें चलते जीब रहल छी

अमित मिश्र

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