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सोमवार, 11 मार्च 2013

कानल मेघ

बाल कविता-7
कानल मेघ

चमकै अम्बर गड़गड़ बाजि
दौड़ै मेघखण्ड काजर साजि
पागल हवा बहै बड जोर
खसलै गाछ चर्र-चर्र बाजि

भागल चिड़ैयाँ अपना घऽर
जोन कतौ नै सून भेल चऽर
अन्हार आँगन अन्हारे दलान
पैसल मोनमे अजबे सन डऽर

टर्र-टर्र बाज बेंग ई जानि
रहबे करतै मेघ आइ कानि
झट-पट अपन छत्ता तान
झम झमा झम बरसै पानि

एहिन वर्षा सब दिन आन
मोन भरि हम करब स्नान
नाव चलेबै अपने आँगन
बात हमर मेघ रखिहें धियान

अमित मिश्र

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