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शनिवार, 27 अप्रैल 2013

उकपाती हाथी

बाल कविता-30
उकपाती हाथी

एकटा हाथी बड उकपाती
ढाही मारि उखारै गाछी
बात-बातपर झगड़ा करै
पटकि-पटकि कऽ हड्डी तोड़ै
बिनु बातक दै घर उजारि
छीनै भोजन पढ़ै बड गारि

एक दिन जाइ छल झूमैत-गाबैत
देखलक पाकल केरा चमकैत
कूदकि-कूदकि कऽ झटपट दौड़ल
केरासँ पहिने खाधिमे खसल

हहरि-हहरि कऽ कानल बाउ
चिकरलक, आउ, किओ आबि बचाउ
देखि कऽ खुश भेल जंगलक परिवार
भने बनि गेल शिकारीक शिकार

बात बूझि हाथी खसल धराम
लालच, दुश्मनीक ई परिणाम
जँ सबसँ दोस्ती कऽ रहितौं
आइ नै एहन खाधिमे खसितौं

अमित मिश्र

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