बाल कविता-105
बाल तूँ आब ज्वाल बन
धरतीपर अभरौ तोरा दुखक छोटो चेन्ह जतऽ
छै कतौ स्वर्ग तँ उतारि आन तूँ ओतऽ
छें बाल तूँ आब ज्वाल बन
आ दूर कर पसरल रुदन
तूँ सूर्य बन तूँ दीप बन
आबें भगा दे तम सघन
कतौ भेटौ तीव्र जलन तँ शीत बनि बरिसें ओतऽ
छै कतौ स्वर्ग तँ उतारि आन तू ओतऽ
आँखिमे सपना जे देखल
भऽ सकल नै लक्ष्य बेधल
तीर बनि आब तूँ निकल
आ बेध कुरीतक तन सबल
छै कतौ जीवन मरैत तँ तूँ सुधा बनि खस ओतऽ
छै कतौ स्वर्ग तँ उतारि आन तूँ ओतऽ
तूँ भगवानक रूप धेने
शक्ति छौ नि:शक्तो भेने
नाँघि जो पर्वत, मरू तूँ
शत्रु दलक संहार केने
छै कतौ बैसाखी तँ स्तम्भ बनि ठाढ़ हो ओतऽ
छै कतौ स्वर्ग तँ उतारि आन तूँ ओतऽ
अमित मिश्र
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें