150. जनता लेल
"बाप रे बाप, आब ऐ गाममे रहनाइ कठिन छै ।यौ मुखिया जी आब किछु करियौ ।डेगे डेगे दारूक दोकान नाकमे दम कऽ देलक अछि ।" गौआँक बाद सूनि मुखिया जीक माँथपर चिन्ता चेन्ह झलकि उठल ।"अहाँ सब ठीके कहै छी ।जनी-जातिकेँ बाहर निकलनाइ मोसकिल भऽ गेल अछि ।अहाँ सब निश्चिन्त रहू ।परसू एकर मंत्रीसँ बात करबै ।" मुखियाक बात सूनि सब घर चलि गेल ।
कते पैरवी लगेलाक बाद मंत्रीसँ भेंट करबाक अवसर भेटलनि ।मंत्री जीक आगूमे दारूक बोतल पसरल छल आ हुनक सेक्रेटरी कामुक अंदाजमे दारू परसि रहल छल ।मुखिया जी मंत्रीक अभिवादन करैत कहलनि "मंत्री जी गाममे दारूक दोकान बढ़ि गेल अछि ।एहिसँ जनताकेँ दिक्कत होइ छै तेँ सबटा दोकान बन्द करबा दियौ ।भरि प्रखण्डमे मात्र एकटा दोकान खोलबाक आदेश दऽ जनतापर रहम करियौ ।"एते कहैत-कहैत दुनू हाथ जोड़ि ठाढ़ भऽ गेलनि मुखिया जी ।गीलासक दारू पीलाक बाद एक बक्कुटा काजू मुँहमे ठुसलक मंत्री आ बाजल " ई क्या बोल रहा है वे !साला बुढ़ा होते हीं सठिया गया है ।ई क्या तब से जनता-जनता लगा रखा है ।आबे तेरे को पता नहीं है, ये सब जनता के लिए हीं खोलबाये हैं ।" मुखिया जीक समझमे किछु नै एलनि ।मंत्री बजनाइ चालू राखलक "अबे जितना ज्यादा दारू बिकेगा उतना ज्यादा टैक्स आयेगा ।जितना ज्यादा टैक्स होगा उतना ज्यादा खर्चा तेरे जनता के सुविधा के लिए कर सकते हैं ।समझा ना ?अब फुट यहाँ से ।अभी तो और दुकान खुलेगा जनता के लिए ।"
मंत्रीक समीकरण सूनि मुखिया जी अवाक् रहि गेलाह ।सोचि रहल छलाह जे जनता लेल जे हानिकारक छै कोना लाभदायक भऽ जेतै जनता लेल ....?
*अपनेक आशिर्वादसँ आइ 150म विहनि(लघु) कथा लिखलौं ।हमरा संग अहाँकेँ ई यात्रा केहन लागल से जरूर बताएब ।
अमित मिश्र
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