165. माँग
मनीष झा दरबज्जापर बैसल लैपटाप पर काज करैत छलाह ।तखने एक बोझ जनेर लेने हुनक नोकर हरखू आएल ।बोझ राखि सुस्तेबाक लेल धरतीपर बैस रहल ।हरखूकेँ बैसल देखिते मनीष झा बाजलनि "रै बैसल किए छें ? जो ने बड़का पट्टी बला खेतक आरि बना दिहें ।"
हरखू अलसाएल मोने बाजल "मालिक आइ नै जा सकब ।आइ मोन उदास अछि ।"
एते सुनिते मनीष झा ओकरा गरियाबऽ लागलनि आ चिकरैत कहलनि "तोरा कोन बातक उदासी छौ ।मोन तँ हम्मर उदास अछि ।आइ हमर बेटा गुलाबजामुन माँगलकै आ हम सगरो बजार छानलाक बादो नै दऽ सकलियै ।"
ई सूनि कननमुँह केने हरखू बाजल "मालिक अहाँक बौआ तँ रोटी-भात खाइये कऽ गुलाबजामुन माँगने हएत, तखनो अहाँ उदास छी, मुदा हमर बेटी तँ कने तरकारी माँगलकै आ हम नै दऽ सकलियै तकर की ?"
अमित मिश्र
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