166. सेनूर
रातिक बारह बाजैत छल ।गुज-गुज अन्हिया आ डेराउन चुप्पी चारू दिस विराजमान छल ।एकाएक मनोजक नीन टूटि गेलै ।चेहा कऽ उठल तँ बगलमे पत्नीकेँ नै देखलक ।मोने मोन शंका ग्रस्त हुअ लागल ।घरसँ बाहर आएल तँ आँगनमे दू गोटाक खुसुर-पुसुर सुनाइ देलकै ।एकटा पुरूष स्वर आ एकटा नारी स्वर आबैत छल ।पुरूष बाजल "देख, आब तूँ प्लानक अन्तीम भाग पूरा कर ।मनोज लऽग बड सम्पति छै ।ओकरा मारि कऽ ओकर मलकाइन तूँ बनि जो ।फेर दुनू गोटा वियाह कऽ लेब ।"
नारी स्वर तीव्र गतिसँ बहराएल "नै, ई हमरा बुते नै हेतौ ।"
पुरूष फेर बुझाबऽ लागल "सप्पत नै तोड़ ।दुनू गोटाक प्रेम एकरा मरलाक बादे सफल हेतै ।"
तामसमे डूबल नारी स्वर फूटल "प्रेम प्रेम प्रेम, बड भेलौ प्रेम।आब अपन-दुनूक प्रेम मरि गेल छौ ।हम तोहर संग देलियै किए तँ तखन कर्ज मुक्त छलियै, मुदा... आब हमरापर सेनूरक कर्ज अछि ।मनोज हमरा अनमोल सेनूर देलनि ।हम अपन प्राणो दऽ कऽ एकर कर्ज नै चुका सकै छीयै, ओकर प्राण लेनाइ तँ बड दूरक बात छै ।"
अमित मिश्र
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