167. उलाएल
दू टा दोस्त गामक स्थितिपर चर्चा कऽ रहल छल ।पहिल दोस्त दोसरकेँ कहलक "चुन्नू बाबूकेँ देखलहीं ।राजासँ रंक बनल जा रहल छथिन ।कते दुर्गति भऽ रहल छन्हि !ऊपर मुँहें जाइ वला विजनेस नीचाँ मुँहे किए जाए लागलै ?"
दोसर दोस्त किछु क्षण सोचलक आ फेर कहलक "हुनकर हाल उलाएल धान जकाँ भेल छै ।उलाएल बीया कखनो नै जन्मै छै ।चुन्नू बाबूकेँ टाकाक घमण्ड भऽ गेल छलनि ।घमण्डक धाहमे हुनक लूरि-बुधि सब उला गेलै, तेँ ओ विजनेसमे नूतनता नै आनलनि आ रंग बनि गेलनि ।असलमे घमण्डे सबकेँ नीचाँ मुँहें लऽ जाइ छै ।बुझलें ।"
अमित मिश्र
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