प्रिय पाहुन, नव अंशु मे अपनेक हार्दिक स्वागत अछि ।

शुक्रवार, 15 नवंबर 2013

दिल और दिमाग

दिल और दिमाग

जब मैं कवि होता हूँ तो
मेरी कविताओं में
वास्तविक प्रेम नहीं होता है
क्योंकि मै दिमाग से सोचता हूँ
जब मैं प्रेमी होता हूँ तो
मेरी कविताओं में
भाव नही रहता है
क्योंकि मैं दिल की सुनता हूँ
दिल और दिमाग
एक हो हीं सकते
एक सच्चाई देखेगा, ओर
एक कल्पना करेगा

अमित मिश्र

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें