यह कोलाहल कैसी है ?
रात के बारह बजे
घोर सन्नाटे के बीच
ओस पीते सड़कों पर
कम्पित होती है हवा
चारो ओर फैलता है
असंख्य पदध्वनि
बिस्तर में घुसे
हजारों दिलों को
सुनाई देती है आहट
वहीं से अनुमान लगाता है
अपने सैनिकों के साथ
शायद आया है तैमूर
सिकन्दर या चंगेज
लूटी जा रही है सोने की चिड़ियाँ
पर वह चूक जाता है
क्योंकी बहुत पहले हीं
लुट चुकी है चिड़ियाँ
अब तो प्राण भी नहीं बचा होगा परिन्दों में
तो फिर यह कोलाहल कैसी है ?
ये आवाज
उसके अर्धमृत अंगों की है
जो उसे रोटी के लिए
मृत पड़े दुनियाँ के
पथरीले रास्ते पर
यूँ हीं दौड़ा रहा है
अमित मिश्र
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