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रविवार, 1 दिसंबर 2013

प्रेमक आगि जे कनिये पजरलै

एकटा गीत

प्रेमक आगि जे, कनिये पजरलै, जरि गेलै जरि गेलै पूरा मिथिला धाम
प्रेम विरोधी, हावा सिहकलै, जरि गेलै जरि गेलै पूरा मिथिला धाम

प्रेमक नीक पाठ पढ़लै जे, ओ एतबे गलती कऽ गेलै
ने संग छोड़नाइ रास एलै, तेँ दुश्मन जगती भऽ गेलै
प्रेमीक जानपर, आफत पड़ल, दऽ गेलै दऽ गेलै नेहक सब दाम
प्रेम विरोधी . . . .

अपन सब बैरिन भेल किए, देखू हाथे हाथे खंजर छै
छै शोणित केर कुण्ड बनल, जाहि गाममे नेहक आखर छै
शोणित के धारपर, खेल खेलै छै, भऽ गेलै भऽ गेलै सब विधि बाम
प्रेमक आगि . . .

बुकनी बुकनी भेल हिया, बस एकहि पलमे जुटि जेतै
ओ फूल ने कहियो मौलेतै, जे नेहक तागमे गुथि जेतै
आगि बिहारि हो, कोनो हो वाधा, बचि जेतै बचि जेतै लऽ कऽ नेहक नाम
प्रेमक आगि . . .

अमित मिश्र

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