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बुधवार, 25 दिसंबर 2013

सेनूर छै अनमोल (भाग-9)

सेनूर छै अनमोल (भाग-9)

राधा- इहो कोनो पुछैक बात छै ।हम तँ वियाह करै लेल तैयारे छलहुँ ।देर तँ अहीं केने छलियै ।बिसरि गेलियै की ?अहीं तँ बड़का भैयाक वियाह होबऽ दै लेल कहने ।अहींक कहलापर शहरी मौज-मस्ती छोड़ि कऽ एहन भुच्चर देहातमे वियाह केलौं ।देखू तँ अहींक इयादमे हमर देह दिनो दिन सुखल जा रहल अछि ।अहाँ तँ एहन रोग लगा देने छी जे खेनाइ-पिनाइ नीक नै लगैत अछि ।
श्याम- मने अहाँ तैयार छी ।चलू तखन तँ सब किछु ठीक अछि ।रश्ता क्लियर अछि, मुदा... ।
राधा- मुदा की ?
श्याम- मुदा एकटा बात एखन बाँकी अछि ।मने...मने जे छै से...कहबाक तात्पर्य जे मुरली संग कहियो ओछैन शेयर...मने जे करिखा पोताइ बला काज नै ने...
राधा- (बिच्चेमे बात काटैत ।) किए, अहाँकेँ हमरापर विश्वास नै अछि की ?
श्याम- (हँसैक चेष्ठा करैत ।)हें...हें...हें...विश्वास तँ अछिये...तैयो जे छै से श्योर भेनाइ जरूरी छै ने ?
राधा- अच्छे, एकटा बात बताउ...जँ हम पवित्र नै रहितियै...जँ हमर शील भंग भेर रहितै तँ अहाँ हमरा नै अपनबितियै ?
श्याम- हें...हें...हें...तखन कोना अपनबितियै !मने जे छै से लकड़ीक डेकची आ लड़कीक सतित्व एक बेर आगि मने पुरूषक सम्पर्कमे एकलाक बाद पुन: प्रयोग योग्य नै ने बचैत छै ?हेँ...हें...हें...खराब नै मानब ।अहीं कहू जाहि लेल वियाह करब सएह ओरिजनल नै भेटत तँ वियाह करैक फायदे की ?
राधा- ठीक छै ।आब छोरू डेकची-डेकचाक बात ।एक्कै टा बात बुझू जे हम पवित्र छी, अनमन गंगा जकाँ ।
श्याम- जखन अहाँ गंगाजल सन पवित्र छी तँ हमहूँ शिवशंकर जकाँ अपन बाँहिमे बान्हैक लेल तैयार छी ।(कने रुकैत !) पुन: कनेक टा समस्या और जनमि गेल अछि ।
राधा- कोन समस्या ? फरिछा कऽ कहू ।
श्याम- टाकाक समस्या ।इम्हर कने हाथ खाली भऽ गेल अछि ।अहाँ तँ जानिते छी, नव घर बसबैमे तेरह तरहक झंझट उत्पन्न होइ छै ।अठहत्तर ठाम खर्च होइ छै, तेँ किछु टाकाक इन्तजाम अहाँ अपना स्तरपर करू ।
राधा- हमरा कोनो बैंक बैलेन्स छै जे जोगार करब ।हमरा बुत्ते ई सब नै हएत ।
श्याम- अहाँ एते जल्दी घबड़ा किए जाइ छी !शान्तिसँ सुनू, एकरो उपाय अछि हमरा लऽग ।अहाँ लऽग जते गहना-गुड़िया अछि से सबटा अपना संगमे लऽ लेब ।किछु टाका मुरलीयोसँ झीट लिअ ।ओनाहितो एते दिनक मुँह देखाइयो तँ भेंटबाक चाही की नै ?जेना-तेना कऽ किछु लेनाहिते आएब ।
राधा- हुनको लऽग टाका नै छै ।ओ अपने खेतिहर छथिन ।हुनका रहतै तखन ने झिटबै ?ओ कतऽसँ देथिन रूपैया ।एक दिस तँ हुनकासँ वियाहक बंधन तोड़ि रहल छी आ दोसर दिस हुनकासँ रूपैया झीट ली ।नै, मोन नै मानैत अछि ।ई सब नै हएत हम बुते ।

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